बारावफात: मोहम्मद साहब के जन्म और देहांत की स्मृति में विश्वभर में आयोजन
साम्हों: इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिवस, जिसे ‘बारावफात’ या ‘मीलाद-उन-नबी’ के नाम से भी जाना जाता है, को पूरे विश्व में धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया गया। यह दिन इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने ‘रबी-अल-अव्वल’ की 12वीं तारीख को आता है, जो पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्म और उनके देहांत दोनों की स्मृति में मनाया जाता है।
बारावफात का ऐतिहासिक महत्व
बारावफात का इस्लाम धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म 570 ईस्वी में मक्का, सऊदी अरब में हुआ था। उन्होंने इस्लाम धर्म की नींव रखी और लोगों को सच्चाई, समानता और मानवता का मार्ग दिखाया। उनके जीवनकाल में दिए गए संदेश और उनके आचरण ने इस्लाम को एक व्यापक धर्म के रूप में स्थापित किया। इसी दिन को इस्लाम धर्म के अनुयायी मीलाद-उन-नबी के रूप में मानते हैं।
विशेष बात यह है कि पैगंबर मोहम्मद साहब का इंतकाल भी इसी तारीख को हुआ था। इतिहास के अनुसार, अपने अंतिम दिनों में पैगंबर साहब बारह दिनों तक बीमार रहे थे और उनका देहांत हुआ। इसी कारण इस दिन को ‘बारावफात’ कहा जाता है, जहां ‘बारा’ का मतलब है बारह और ‘वफात’ का मतलब है निधन। बारावफात का अर्थ यह हुआ कि पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म और देहांत दोनों इस दिन को एक ही साथ जुड़े हुए हैं, जो इसे इस्लामिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण तिथि बनाता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों की धूम
बारावफात को लेकर दुनिया भर में मुस्लिम समुदायों में अलग-अलग रीति-रिवाजों और प्रथाओं का पालन किया जाता है। इस दिन विशेष नमाज, जुलूस और सामुदायिक आयोजनों का आयोजन किया जाता है। मस्जिदों और अन्य धार्मिक स्थलों पर धार्मिक उपदेश दिए जाते हैं, जिसमें पैगंबर मोहम्मद साहब के जीवन और उनके द्वारा दिए गए संदेशों पर विस्तार से चर्चा होती है।
मुसलमान इस दिन इबादत में डूब जाते हैं और अल्लाह से दुआएं मांगते हैं। पैगंबर साहब की शिक्षाओं को आत्मसात करने की प्रेरणा लेते हुए, समाज में उनके संदेश को फैलाने का प्रयास किया जाता है। धार्मिक आयोजनों के साथ-साथ जुलूस निकाले जाते हैं, जिसमें लोग पैगंबर मोहम्मद साहब की जय-जयकार करते हुए सड़कों पर निकलते हैं। कई स्थानों पर लोगों के बीच मिठाइयां और तबर्रुक (प्रसाद) बांटा जाता है, ताकि इस खास दिन की खुशियां साझा की जा सकें।
भारत में बारावफात की धूम
भारत, जो अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता के लिए जाना जाता है, यहां भी बारावफात धूमधाम से मनाया जाता है। विभिन्न राज्यों में, विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और कर्नाटक में इस दिन को लेकर काफी उत्साह देखा गया। प्रमुख शहरों में बड़े पैमाने पर जुलूस निकाले गए, जहां लोग पारंपरिक परिधानों में सड़कों पर उतरे और पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं को याद किया।
मस्जिदों में विशेष नमाज और दुआओं का आयोजन हुआ, जहां हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग इकट्ठा हुए। धार्मिक विद्वानों ने पैगंबर मोहम्मद साहब के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डाली और बताया कि उनके संदेश आज भी किस प्रकार प्रासंगिक हैं।
विभिन्न सामाजिक संगठनों ने भी इस दिन सामुदायिक दावतों और जरूरतमंदों के बीच खाद्य वितरण का आयोजन किया। यह दिन प्रेम, भाईचारे और शांति का प्रतीक माना जाता है, और इसे मनाने का उद्देश्य पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारना और उनके संदेशों को समाज में फैलाना होता है।
बारावफात का संदेश
पैगंबर मोहम्मद साहब का जीवन न केवल इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए प्रेरणास्रोत है। उन्होंने लोगों को एकता, सच्चाई, न्याय और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाया। उनके संदेश आज भी दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में सहायक हो सकते हैं।
बारावफात केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि यह उस महान संदेश की याद दिलाता है, जो मोहम्मद साहब ने मानवता को दिया। इस दिन की सबसे बड़ी सीख यह है कि हमें मोहम्मद साहब के बताए गए मार्ग पर चलना चाहिए और समाज में शांति, प्रेम और भाईचारा बनाए रखना चाहिए।
– अशु झा, भारत क्रांति न्यूज़