हाथ में मशाल लिए आत्माओं को बुलाते हैं: जानें देश के अलग-अलग हिस्सों में कैसे मनाई जाती है दिवाली
नई दिल्ली। दिवाली यानी अंधकार पर प्रकाश की विजय, बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व। लेकिन भारत जैसे विविधता भरे देश में, इस त्योहार को मनाने के तरीके भी उतने ही अनोखे हैं जितनी इसकी ऐतिहासिक गाथाएं। कहीं देवी-देवताओं की आराधना होती है, तो कहीं पूर्वजों को याद कर आत्माओं को बुलाया जाता है। आइए जानते हैं, भारत के विभिन्न राज्यों में दिवाली कैसे बनती है परंपरा और आस्था का अद्भुत संगम।
उत्तर भारत: लक्ष्मी-गणेश पूजा और दीपदान का पर्व
उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में दिवाली का अर्थ है – लक्ष्मी और गणेश की पूजा। इस दिन घरों की सफाई, सजावट और दीपदान किया जाता है। किवदंती के अनुसार, भगवान राम इसी दिन 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे थे, इसलिए अयोध्यावासियों ने दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। आज भी अयोध्या में सरयू तट पर लाखों दीपकों से जगमगाती दीपोत्सव की झलक विश्वभर में देखी जाती है।
गुजरात: व्यापारियों का नया साल
गुजरात में दिवाली का विशेष महत्व धनतेरस और नए साल से जुड़ा है। इस दिन व्यापारी अपने पुराने हिसाब-किताब बंद कर नए बही खाते की शुरुआत करते हैं। इसे “साल मुबारक” कहकर मनाया जाता है। लोग मां लक्ष्मी और कुबेर की आराधना कर आने वाले साल में समृद्धि की कामना करते हैं।
महाराष्ट्र: नरक चतुर्दशी से गोवर्धन पूजा तक
महाराष्ट्र में दिवाली की शुरुआत वसुबारस से होती है। इसके बाद धनतेरस, नरक चतुर्दशी, लक्ष्मी पूजन, बलिप्रतिपदा और भाऊबीज तक त्योहार पांच दिनों तक चलता है। यहां घरों में फराल (मिठाई और नमकीन का विशेष प्रसाद) तैयार किया जाता है। महिलाएं “उखाणा” गाकर शुभकामनाएं देती हैं।
गोवा: राक्षस के अंत का प्रतीक – नरकासुर दहन
गोवा में दिवाली का प्रमुख आकर्षण नरकासुर दहन है। लोग मिट्टी, लकड़ी और कपड़े से विशाल नरकासुर का पुतला बनाते हैं। रातभर युवा पारंपरिक ढोल और बैंड के साथ जुलूस निकालते हैं और सुबह होते ही उस पुतले को जलाकर बुराई के अंत का प्रतीक मनाते हैं। यह परंपरा कृष्ण द्वारा नरकासुर वध की कथा पर आधारित है।
पश्चिम बंगाल: श्मशान में देवी काली की आराधना
यहां दिवाली को काली पूजा कहा जाता है। कोलकाता, हुगली और नदिया जिलों में घरों और मंदिरों को लाल-काले दीपकों से सजाया जाता है। खास बात यह है कि कोलकाता के केवड़ातला श्मशान में 150 साल पुरानी परंपरा के तहत जलती चिताओं के बीच मां काली की पूजा होती है। ऐसा माना जाता है कि देवी काली को श्मशान की ऊर्जा प्रिय है और वे वहां तांत्रिक साधकों को सिद्धि प्रदान करती हैं।
अरुणाचल प्रदेश: मक्खन के दीपों से जगमगाते मठ
तवांग और आसपास के बौद्ध क्षेत्रों में दिवाली का माहौल शांत, आध्यात्मिक और पर्यावरण-अनुकूल होता है। यहां मोनपा जनजाति के लोग “चमसंग” नामक पूजा करते हैं। मक्खन से बने दीपक जलाकर ज्ञान, करुणा और आत्मशुद्धि का प्रतीक मनाया जाता है। बच्चे और साधु मिलकर मठों में भजन गाते हैं और प्रार्थनाएं करते हैं।
सिक्किम और नेपाल: तिहार यानी जानवरों का सम्मान
सिक्किम में दिवाली को तिहार कहा जाता है, जो नेपाल में भी मनाया जाता है। यह पर्व मनुष्य और पशुओं के बीच संबंधों का उत्सव है।
पहले दिन कौवों की पूजा – जो संदेशवाहक माने जाते हैं।
दूसरे दिन कुत्तों की पूजा – जो निष्ठा और सुरक्षा का प्रतीक हैं।
तीसरे दिन गायों की पूजा – जिन्हें मां का दर्जा दिया गया है।
चौथे दिन गोवर्धन पूजा और बैल आराधना होती है।
अंतिम दिन भाई-बहन एक-दूसरे की लंबी उम्र और सुख की कामना करते हैं।
ओडिशा: मशाल लेकर बुलाते हैं आत्माएं
ओडिशा में दिवाली का अर्थ सिर्फ दीप जलाना नहीं, बल्कि पूर्वजों की आत्माओं का स्वागत करना है। यहां कौंरिया काठी और बड़बदुआ डाका नाम की रस्म निभाई जाती है।
लोग जलती मशालें लेकर घर के बाहर खड़े होते हैं और पुकारते हैं—
“आओ-आओ बापूजी, पिठा खाओ, पाना पिओ।”
इसका अर्थ है, “आओ पूर्वजों, हमारे घर आओ, मिठाई खाओ और हमारे जीवन को आशीर्वाद दो।”
यह परंपरा सदियों पुरानी है और आज भी ग्रामीण इलाकों में पूरे विश्वास के साथ निभाई जाती है।
कश्मीर और लद्दाख: दिवाली बनती है प्रार्थना और रोशनी का पर्व
लद्दाख के कुछ हिस्सों में बौद्ध समुदाय दिवाली को “ल्हाबा लॉसार” के रूप में मनाता है। इस दिन लामा मठों में दीये जलाए जाते हैं और शांति के लिए मंत्रोच्चार किया जाता है।
दिवाली: सिर्फ एक त्योहार नहीं, भारत की आत्मा है
इन सभी परंपराओं से यह स्पष्ट होता है कि दिवाली केवल रोशनी का त्योहार नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति, आस्था, विविधता और एकता का प्रतीक है।
कहीं यह कृष्ण की विजय का दिन है, कहीं काली की शक्ति का, और कहीं पूर्वजों की आत्मा को स्मरण करने का—पर हर जगह संदेश एक ही है:
“अंधकार मिटाओ, प्रकाश फैलाओ, और दिलों में प्रेम जगाओ।”

Author: Bharat Kranti News
Anil Mishra CEO & Founder, Bharat Kranti News Anil Mishra is the CEO and Founder of Bharat Kranti News, a platform dedicated to fearless and unbiased journalism. With a mission to highlight grassroots issues and promote truth in media, he has built Bharat Kranti News into a trusted source of authentic and people-centric reporting across India.